आवरण कथा:सयाजीराव गायकवाड़डा़ॅ आंबेडकर और वंचित समाज
|
इंजी़ राजेश पाठक
अंग्रेजी राज में वंचित वर्ग के कल्याण के लिए जिन विभूतियों ने कार्य किया ऐसे लोगांे की बड़ी संख्या है। पर इस क्षेत्र में बड़ौदा रियासत के नरेश सयाजीराव गायकवाड़ का योगदान विविधताओं से भरा और अतुलनीय रहा । तत्कालीन 19वीं सदी के दौर में निम्न-जति के बंधु जिस सामाजिक-भेदभाव का सामना करते थे उसको दूर करने में ज्योतिबा फुले ने जो क्रांतिकारी कार्य किये, उसके लिये जिनके प्रयासों से वे 'महात्मा' की उपाधि से विभूषित हुये वे सयाजीराव गायकवाड़ ही थे। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेज सरकार से आग्रह किया कि उन्हें भारत के 'बुकर टी वाशिंगटन' की पदवी दी जाए। आगे चलकर, वीर सावरकर के पिता, भाई परमानन्द के आग्रह पर उन्होंने ज्योतिबा के मृत्योपरांत उनकी पत्नी व पुत्र के जीवन-यापन के लिये बड़ौदा के सरकारी-कोष से धन की व्यवस्था की।
ठीक उसी प्रकार,'मिशन टू द डिप्रेस्ड क्लासेस इन इण्डिया' के संस्थापक, महर्षि शिन्दे जब इंग्लैंड के मैनचेस्टर कालेज में अध्ययन कर रहे थे तब उनकी छात्रवृत्ति की व्यवस्था सयाजी राव ने ही की। हिंसा और प्रतिशोध की भावना से दूर रहते हुये वंचित वर्ग स्वयं का उद्धार करे, यह महर्षि शिन्दे का मत था और इस काम को पूरा करने में उन्हें जहां भी जरूरत पड़ी सयाजी राव से पूरा सहयोग मिला।
और तो और भारत के संविधान के निर्माता भारत-रत्न भीमराव आंबेडकर को अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त करते समय जब कभी अर्थ की जरूरत पड़ी उसे सयाजी राव ने ही पूरा किया। जब वे उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाने लगे तब उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी तो अपने गुरु श्री कृ़ अ. केलुस्कर की सिफारिश पर इसकी पूर्ति भी सयाजी राव के द्वारा छात्रवृत्ति के रूप में हुई। समय-समय पर सयाजी राव से जो सहयोग मिला उसका गहरा प्रभाव डॉ. आंबेडकर के मन पर पड़ा और उसके कारण वे उनका बड़ा सम्मान करते थे, उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखते थे। इसलिये जब उन्होंने अपना पी-एच़ डी. शोधप्रबन्ध प्रकाशित किया, तो उसे किसी और को नहीं बल्कि सयाजीराव को अर्पित किया।
19 मार्च, 1918 को मुम्बई में 'अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण परिषद्' का अधिवेशन आयोजित किया गया था। अधिवेशन में अपने समय के विख्यात नेता विट्ठलभाई पटेल, बैरिस्टर जयकर, बिपिनचन्द्र पाल के अलावा सयाजीराव नें भी भाग लिया, उन्होंने अधिवेशन की अध्यक्षता भी की। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होनें जो कहा वह जातिगत अस्पृश्यता के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है-' समाजिक नवजीवन व शास्त्रीय ज्ञान के मुकाबले अज्ञानमूलक गलतफहमी व जात्याभिमान का टिकना असम्भव है़ अस्पृश्यता मनुष्यनिर्मित है, ईश्वरनिर्मित नहीं।'
अंग्रेजी राज में वंचित वर्ग के कल्याण के लिए जिन विभूतियों ने कार्य किया ऐसे लोगांे की बड़ी संख्या है। पर इस क्षेत्र में बड़ौदा रियासत के नरेश सयाजीराव गायकवाड़ का योगदान विविधताओं से भरा और अतुलनीय रहा । तत्कालीन 19वीं सदी के दौर में निम्न-जति के बंधु जिस सामाजिक-भेदभाव का सामना करते थे उसको दूर करने में ज्योतिबा फुले ने जो क्रांतिकारी कार्य किये, उसके लिये जिनके प्रयासों से वे 'महात्मा' की उपाधि से विभूषित हुये वे सयाजीराव गायकवाड़ ही थे। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेज सरकार से आग्रह किया कि उन्हें भारत के 'बुकर टी वाशिंगटन' की पदवी दी जाए। आगे चलकर, वीर सावरकर के पिता, भाई परमानन्द के आग्रह पर उन्होंने ज्योतिबा के मृत्योपरांत उनकी पत्नी व पुत्र के जीवन-यापन के लिये बड़ौदा के सरकारी-कोष से धन की व्यवस्था की।
ठीक उसी प्रकार,'मिशन टू द डिप्रेस्ड क्लासेस इन इण्डिया' के संस्थापक, महर्षि शिन्दे जब इंग्लैंड के मैनचेस्टर कालेज में अध्ययन कर रहे थे तब उनकी छात्रवृत्ति की व्यवस्था सयाजी राव ने ही की। हिंसा और प्रतिशोध की भावना से दूर रहते हुये वंचित वर्ग स्वयं का उद्धार करे, यह महर्षि शिन्दे का मत था और इस काम को पूरा करने में उन्हें जहां भी जरूरत पड़ी सयाजी राव से पूरा सहयोग मिला।
और तो और भारत के संविधान के निर्माता भारत-रत्न भीमराव आंबेडकर को अपनी महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त करते समय जब कभी अर्थ की जरूरत पड़ी उसे सयाजी राव ने ही पूरा किया। जब वे उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाने लगे तब उन्हें धन की आवश्यकता पड़ी तो अपने गुरु श्री कृ़ अ. केलुस्कर की सिफारिश पर इसकी पूर्ति भी सयाजी राव के द्वारा छात्रवृत्ति के रूप में हुई। समय-समय पर सयाजी राव से जो सहयोग मिला उसका गहरा प्रभाव डॉ. आंबेडकर के मन पर पड़ा और उसके कारण वे उनका बड़ा सम्मान करते थे, उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखते थे। इसलिये जब उन्होंने अपना पी-एच़ डी. शोधप्रबन्ध प्रकाशित किया, तो उसे किसी और को नहीं बल्कि सयाजीराव को अर्पित किया।
19 मार्च, 1918 को मुम्बई में 'अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण परिषद्' का अधिवेशन आयोजित किया गया था। अधिवेशन में अपने समय के विख्यात नेता विट्ठलभाई पटेल, बैरिस्टर जयकर, बिपिनचन्द्र पाल के अलावा सयाजीराव नें भी भाग लिया, उन्होंने अधिवेशन की अध्यक्षता भी की। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होनें जो कहा वह जातिगत अस्पृश्यता के प्रति उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है-' समाजिक नवजीवन व शास्त्रीय ज्ञान के मुकाबले अज्ञानमूलक गलतफहमी व जात्याभिमान का टिकना असम्भव है़ अस्पृश्यता मनुष्यनिर्मित है, ईश्वरनिर्मित नहीं।'
No comments:
Post a Comment